islamic kattarta

 


कट्टरता किया होती है ?  

(रिज़वान अहमद 10-09-2020) 

दोस्तों मेरे ब्लॉग का शीर्षक है कट्टरता किया है ,
जी हाँ दोस्तों कट्टरता शब्द सुनते ही हर इंसान के दिल -ओ -दिमाग में एक अजीब सी बेचैनी का दौड़ जाना स्वाभाविक है,
मै समझता हूँ हर इंसान को अपने धर्म के प्रति कट्टर होना चाहिए, 
ठहरिये ठहरिये इतनी जल्दी अंजाम तक मत पहुँचिये, कट्टरता का मतलब हरगिज़ वह मत निकालिये  जो आजकल हम देख और सुन रहे है, कहीं कोई जय श्रीराम कह कर हाथ में हथियार लेकर चिल्ला चिल्ला कर खुद को कट्टर दर्शाता है, हिन्दू हो या मुसलमान कट्टरता के नाम पर कोई किसी की जान ले ले यक़ीनन ये कोई धर्म नहीं है, किसी भी धर्म के विद्वान् की नज़र में ये धर्म का हिस्सा नहीं है, 
 

किया हमें ये कट्टरता पसंद है? यक़ीनन ये कट्टरता हमारे हिन्दू भाइयों को भी पसंद नहीं है क्योंकि  जितना मुझे हिन्दू धर्म के बारे में मालूम है मै जानता हूँ बहुत शांतिप्रिय धर्म है कुछ लोग हैं जो राजनीती के चलते कुछ गलत कर जाते हैं, हम इस कट्टरता को सही नहीं मानते,,  


ठीक इसी तरह दूसरी तरफ कहीं कोई अपुन को बोलते मियां भाई कह कर शोसल मीडिया पर बेवकूफाना वीडियो और स्टेटस  डालता है और अपने आपको कट्टर मुसलमान दर्शाता है, ना वो कट्टरता किसी का भला कर सकती है ना ही इस वाली कट्टरता में किसी के लिए कोई भलाई है, सच कहूं तो (अपुन को बोलते मियां भाई ) इस टाईटल से ही मुझे ऐतराज़ है इसमें घमंड झलकता है,
 



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लेकिन फिर भी ये बात मै पूरे आत्मविश्वास के साथ कह रहा हूँ के हर इंसान कोअपने धर्म के प्रति पूरी ईमानदारी के साथ कट्टर होना चाहिये , कट्टर होना चाहिए अपनी धार्मिक किताबों के  प्रति, कट्टर होना चाहिए अपने धर्म के महापुरूषों दिए हुवे उपदेश के प्रति, 
और जहाँ तक मै समझता हूँ किसी धर्म की धार्मिक किताब और किसी धर्म के महापुरुष ने जो सबसे पहला सन्देश
दिया है वो इंसानियत का सन्देश ही है ,  
  
आइये दोस्तों आज मै आपको इस्लाम की कट्टरता समझाता हूँ सबसे पहले तो मै यहाँ ये बात साफ़ कर  देना चाहता हूँ
इस्लाम धर्म में कट्टर शब्द की कहीं कोई गुंजाईश नहीं है, इस्लाम में तक़वा शब्द है जी हाँ दोस्तों तक़वा , इसी तक़वा शब्द को हम कट्टर शब्द कह कर  इस्तेमाल करेंगे ताकि बात सबकी समझ में आये,

हकीकत ये है के अगर कोई तक़वा और सब्र से काम ले तो
अल्लाह के यहाँ ऐसे लोगों का अजर (बदला) मारा नहीं जाता 


आइये दोस्तों बात करते हैं इस्लाम की  पहली कट्टरता की,
इस्लाम की सबसे पहली और सबसे कीमती कट्टरता है कलमा ए तैयब ( ला  इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मदुर रसूलुल्लाह )
इस्लाम की कट्टरता का सर्वप्रथम और सबसे बेशकीमती हिस्सा है अपने बनाने वाले अल्लाह और अपने पालने वाले रब का वफादार बंदा बन कर और उसके भेजे हुवे नबी पैगम्बर जनाब ए  मोहम्मदुर रसूलुल्लाह के प्यारे तरीके पर ज़िन्दगी गुज़ारना,
 और यहाँ पर मै एक बात अपनी तरफ से लिखना चाहता हूँ क्योंकि मै कोई मुफ़्ती या आलिम नहीं हूँ लाखों करोडो इंसानो की तरह एक मामूली और आम सा इंसान हूँ, किसी भी तरह की भूल चूक और कोताही की माफ़ी सबसे  पहले मै  अल्लाह से मांगता हूँ और फिर आप सब पढ़ने पढ़ने वालों से मांगता हूँ ,

फरमान ए हज़रत अली रज़िअल्लाहु ताला अन्हू 
लोगों को उसी तरह माफ़ कर दिया करो जैसे के तुम खुदा से उम्मीद रखते हो ,,


अपनी तरफ से जो मै बात लिखना चाहता था वो ये है के मेरा मानना है जो इंसान अपने पैदा करने वाले का वफादार नहीं यक़ीनन वो दुनिया में भी किसी का वफादार नहीं हो सकता, 

आइये अब हम बात करते हैं इस्लाम की बाकी कटटरताओं के बारे में, 
इस्लाम की दूसरी कट्टरता है पांच वक़्त की नमाज़ पाबन्दी और फ़िक्र के साथ पढ़ना,
इस्लाम की तीसरी कट्टरता है रमजान के महीने में रोज़े रखना ,
इस्लाम की चौथी कट्टरता है हज के मौसम में हज करना ,
इस्लाम की पांचवी कट्टरता है जकात (दान) देना ,,, कट्टरता मतलब तक़वा ये ज़रूर दिमाग में रखना ,


ये जो पांच कट्टरता हैं इन कट्टरताओं का ताल्लुक सिर्फ मुसलमानो से है,

आइये अब हम उन कट्टरताओं की बातें करते हैं जिनका ताल्लुक पूरे समाज से है समाज में रहने वालों से है, हिन्दुओं से है सिख ईसाईयों से है शहरों में रहने  वालों से है गाँव के देहातियों से है जंगल के आदिवासियों से यहाँ तक के ज़मीन पे चलने वाले जानवर आसमान पे उड़ने वाले परिंदे रेंगने वाले कीड़ों तक से है, 

सबसे पहले तो इस्लाम की वो महत्वपूर्ण कट्टरता जो क़ुरान ए पाक और तमाम हदीसों का निचोड़ है वो ये है के एक मुसलमान तब तकअच्छा मुस्लमान नहीं कहलाया जा सकता है जब तक के वो एक अच्छा इंसान नहीं है, 


फरिश्ता बनने से अच्छा है इंसान बनो
इंसान बनने में लगती है मेहनत ज्यादा... 

आइये अब बाकी कट्टरताओं पर आगे बढ़ते हैं, इस्लाम की प्रमुख कट्टरताओं में से एक है पडोसी का हक़, 


अपने पड़ोसी का हक़ अदा करो उसे भूखा ना रहने दो,
चाहे उसका मज़हब कोई भी हो ,,
(हज़रत मोहम्मद  ﷺ)

✦नबी-ऐ-करीम (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया “वोह शख्स मोमिन नहीं जो खुद पेट भर कर खाए और उसका पड़ोसी भूखा रह जाए।”

– (शोएब उल इमान 5660 © www.ummat-e-nabi.com/home)

✦ अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने फ़रमाया “जो कोई अल्लाह और आख़िरत के दिन पर इमांन रखता है वो अपने पडोसी को तकलीफ ना पहुंचाए।”

– (बुखारी 6018 © www.ummat-e-nabi.com/home)

✦ रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, वो शख्स जन्नत में नहीं जायेगा जिसका पडोसी उसके मक्कार ओ फसाद (ज़ुल्मो सितम) से महफूज़ न हो

– (सहीह मुस्लिम 79 © www.ummat-e-nabi.com/home)

आइये और आगे बढ़ते हैं इस्लाम की और कट्टरताओं के बारे में बात करते हैं, इस्लाम की महत्वपूर्ण कट्टरताओं की जिनकी समाज के हर रहने वालों को ज़रूरत है,जो हमारी रोज़ाना की ज़िन्दगी में काम आने वाली कट्टरताएं हैं, हम सुबह से शाम तक रोज़ाना अनेक लोगों से  मिलते हैं हर प्रकार के लोगों से हमारी मुलाकात होतीं हैं , हम एक दुसरे से काम के सिलसिले में मिलते हैं सफर के दौरान लोगों से हमारी बस, ट्रैन, हवाई जहाज वगैरा में मुलाकतें  होती हैं, असल में यहाँ हमें असली कट्टरता दिखानी है,

क्योंकि मै ऊपर पहले ही ये बात लिख चूका हूँ के हर इंसान को अपने धर्म के अनुसार कट्टर होना चाहिए इस लिए मै यहाँ कुछ हदीस और कुरान की बातें कोड कर रहा हूँ जिन्हे हमें अपने दिल ओ  दिमाग में इस तरह से बिठा लेना चाहिए के वो बातें हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के अमल में आजायें और हमसे गलती करने चांस कम हो जाएँ 
मिसाल के तौर जब हम किसी से बात करें तो इसमें हमारे नबी सल्लाहु अलैहि वसल्लम का यहाँ किया तरीका है ,   

✦ रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, बोलो तो अच्छी बात बालो वरना खामोश रहो 

सही बुखारी 6019 
अगर कोई हमारे साथ कुछ बुरा कर दे तो ज़ाहिर सी बात हमें गुस्सा आयेगा, गुस्सा आएगा तो हमारा दिल चाहेगा के हम उससे बदला लें, और अगर हम आज के माहौल को देखें और उसके बदला लें तो सोचो किया हो जाये,
तो ऐसे वक़्त के लिए अल्लाह सुबहाना ओ तआला फरमाता है,
अर्थात: अल्लाह तआला सीधे सीधे यहाँ इस बात पर ज़ोर दे रहा के लोगों की खताओं को माफ़ कर दो तो ये तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है, 
लोगों से लोगों के मामलात यानी एक दुसरे के साथ रहने के तरीकों पर अल्लाह तआला इस तरह से नज़र रखता है के कुरान उतरने से बहुत पहले जब हज़रत लुकमान अपने अपने बेटे को कोई नसीहत यानी कोई बात समझा रहे थे तो वो बात अल्लाह तआला को इतनी पसंद आई के उस बात को कुरान में भी कोड कर दिया, ताकि क़यामत तक आने वाले  इस बात पर अमल कर के खुद को और दूसरों को भी बहुत सी परेशानियों से बचाएं,
अर्थात: अल्लाह तआला यहाँ पर हमें ये समझाना चाहता है के लोगों से लापरवाही से बात ना करो  घमंड के साथ ना चलो अल्लाह तआला घमंड करने वालों को शेखी मारने वालों को पसंद नहीं करता लोगों से तेज यानी चिल्ला कर बात ना करो अपनी आवाज़ को सुन्दर सुरीली आहिस्ता रखो, अगर सच में ऊंची और तेज आवाज़ में कोई खासियत होती तो याद रखो गधे की आवाज़ बहुत अच्छी होती, जबकि सबसे बुरी आवाज़ों में गधे की आवाज़ होती है ,

दिल पर हाथ रख कर दिल ही से ये बात बताना दोस्तों के अगर हम कुरान के इस फरमान यानी हुक्म पर अमल करना शुरू कर दें तो किया खुद-ब-खुद हमारी बहुत सी परेशानियों का अंत नहीं हो जायेगा, मेरा मानना तो ये है के यक़ीनन हो जायेगा, 

चलिए आगे बढ़ते हैं और कट्टरताओं की बातें करते हैं ऐसी कट्टरताओं की बातें जो अगर हमारी ज़िन्दगी में वाकई में कट्टरता के साथ शामिल हो जाये तो यकीन मानो हमारी ज़िन्दगी गुलज़ार हो जाये, मै हम, हमारी, हमारे ,शब्दों पर ज़ोर इसलिए ज्यादा दे रहा हूँ क्योंकि यहाँ पर मै  जो बाते कर रहा हूँ वो हम सबकी बातें कर रहा हूँ क्योंकि अगर हम इंसान हैं तो  हम हैं अगर  हम खुद  को समाज का हिस्सा समझते हैं तो हम हैं, हम  हिन्दू हैं तो हम हैं अगर मुस्लमान हैं तो हम हैं हम किसी भी धर्म से आते हैं अगर हम, हम बनकर रहेंगे तो हम इंसान हैं हमारा धर्म हमारा अंदरूनी मसला है ये हमारे घर का मसला है, हमारा धर्म उस वक्त बहुत खूबसूरत है जब हम अपने धर्म की वो बातें समाज के साथ बांटे जिससे समाज एक दुसरे के साथ मज़बूती से जुड़े तो यकीन मानो हम  अपने धर्म का कट्टरता से  पालन करने वाले धार्मिक लोग हैं, और अगर हम अपने धर्म की वजह से समाज को तोड़ते हैं समाज में नफरत फैलाते हैं तो हम धार्मिक तो किया एक इंसान कहलाने लायक भी नहीं हैं, 

चलिए इस्लाम की कुछ और कट्टरताएं जान ली जाएँ,
यानी की यहाँ पर भी इसी कट्टरता पर ज़ोर दिया जा रहा के किसी की गलती दर गुज़र का गुज़र करो मतलब इगनोर करो भले ही आप हक़ पर हो अपनी जगह पर सही हो यहाँ पर हमें मज़ाक में भी झूंट बोलने से रोका जा रहा है क्योंकि झूंट हर फसाद की जड़ है,  

चलिए और आगे बढ़ते हैं, दोस्तों इंसान की कमज़ोरियों में एक बड़ी कमज़ोरी ये है के वो अक्सर खुद को बड़ा और दूसरों को छोटा और गिरा हुवा समझता है थोड़ा पैसा पावर आजाये तो घमंड में चूर हो जाता है, हालांकि उसको इस बात का ज़रा भी अहसास नहीं होता के समाज उसके बारे में किया राये रखता है किया सोचता है, हमें इस मामले में भी कट्टरता दिखानी है, यहाँ हम अगर अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ऐसी ऐसी हदीसों को दिमाग में रख लें तो ये वाला मसला भी ख़तम हो जाये और इस मसले के साथ बहुत बहुत बड़े मसले खुद ही ख़तम हो जायेंगे,        
अर्थात: इस हदीस के ज़रिये अल्लाह अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हमारे लिए और आने वाले तमाम दुनिया के लोगों के लिए ये बात कहलवा रहा है के आदमी अल्लाह को खुश करने अल्लाह का ध्यान अपनी और खींचने के लिए हमेशा खुद को कमतर छोटा आदमी समझे और सामने वाले से उसी तरह पेश आये जैसे वो खुद बहुत छोटा और सामने वाला बहुत ऊंचा और इज़्ज़तदार आदमी है अगरचे सामने वाला उसके मुकाबले बहुत छोटा आदमी है, इससे किया फायदा होगा, हालंकि ज्यादातर लोग ये बात जानते हैं के किया फायदा होगा लेकिन फिर भी मै यहाँ ये बात लिख रहा हूँ, उससे ये फायदा होगा क्योंकि आपके सामने वाला आदमी आपसे बहुत छोटा है अपने ओहदे में अपनी ताकत में रुपया पैसों में हर लिहाज से वो आपसे  छोटा है और ये बात वो खुद भी अच्छी तरह से जानता है, अब वो आपकी इज़्ज़त सिर्फ आपके सामने ही नहीं आपके पीछे भी उसी तरह करेगा बल्कि सैकड़ों लोगों को आपकी इज़्ज़त करने पर मज़बूर करेगा, इसके उलट अगर आप खुद को बड़ा और ऊंचा जान कर दूसरों से मिलोगे उनसे बातें करोगे ज़ाहिर सी बात है के आपके बात करने के तरीके में घमंड और अकड़ साफ़  दिखाई देगी क्योंकि आप पहले ही खुद को श्रेष्ठ मान चुके हैं, उसका नतीजा यह निकलेगा के वो आपके सामने तो  डर और मज़बूरी में आपकी इज़्ज़त कर लेगा लेकिन पीठ पीछे  शायद वो आपको खुद भी ज़रा सी इज़्ज़त ना दे दूसरों को कहाँ से आपकी इज़्ज़त करने पर मज़बूर करेगा ,,, बस यहाँ  दिमाग में रखने वाली यही बात है के आपके दिमाग में बस अल्लाह का ध्यान अपनी और खींचना हो ना के ये दिमाग में रहे के ऐसा करने  से लोग मेरी इज़्ज़त करे,



मेरे खयाल में ब्लॉग लम्बा हो गया है, भाग दौड़ भरी  इस ज़िन्दगी में अगर किसी ने मेरा ब्लॉग यहाँ तक पढ़ लिया है ये मेरे लिए बहुत बढ़ा  इनाम होगा उस पढ़ने वाले की तरफ से, और जो बात दिमाग में रख कर मै ये लेख लिख रहा हूँ कुछ हद तक मेरी वो कोशिस भी कामियाब हो जाएगी मेरी हर हाल में कोशिश है के नफरतों को ख़त्म किया जाये, बस एक हदीस को और साझा  करना चाहता हूँ आपके साथ उसके बाद इसको मुकम्मल करते हैं, यहाँ मै आपके साथ वही सब बातें साझा कर रहा हूँ जो बातें हमारे दिमाग को ठंडा करें जिन बातों से हमें पता चले के इंसान की कोई औकात नहीं है इंसान को एक दिन मर जाना है और मर जाने वाले की किया हैसियत, जब हमारी समझ में ये बात आजयेगी, तो मै यकीन से कहता हूँ के सबकुछ सही हो जायेगा,
अर्थात: यहाँ पर अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बान  मुबारक से अल्लाह तआला ये बात निकलवा रहा है के कोई भी इंसान खुद को खुद ही इतना बड़ा समझने लगे के लोग उसको देखते ही खड़े हो जाएँ तो समझो उसका ठिकाना नर्क यानि जहन्नुम है, हाँ अगर लोग खुद उसको इज़्ज़त देने के लिए खड़े हो जाते हैं तो कोई बात नहीं बस वो इंसान इस बात से अपने अंदर घमंड ना पाले,  

दोस्तों मै लिखता रहूँगा लिखता ही जाऊंगा लेकिन कुरान और हदीस की ये प्यारी बातें कभी ख़त्म नहीं होंगी मेरा असल मतलब था सबको अपने अपने धर्म की कट्टरता समझाना, मेरे इस्लाम की तो कट्टरताएं यही हैं और सब इसी तरह की प्यारी प्यारी हैं , और  मै ये भी जानता हूँ सब के धर्म की कट्टरताएं इसी तरह प्यारी होंगी,मेरी आप सब पढ़ने वालों से प्रार्थना है, अपने अपने धर्म की कट्टरताओं का सच्चाई से पालन करें, नफरत को बढ़ावा बिलकुल ना दें, मै  भी आप सबकी तरह एक आम इंसान हूँ किसी राजनितिक पार्टी से मेरा कोई लेना देना नहीं है कमसेकम एक आम आदमी दुसरे आम आदमी की बात तो मान ही सकता है, 

दोस्तों मेरी आप सबसे प्रार्थना है के मेरे इस ब्लॉग को पढ़ कर कमेंट बॉक्स में अपनी कीमती राये अपने कीमती विचार इस ब्लॉग के लिए ज़रूर दें 
आप अपने विचार मुझे ईमेल भी कर सकते हैं rizwan3214@gmail.com    

(रिज़वान अहमद )  

शुक्रिया धन्यवाद Thank-you 


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