Rizwan Ahmed (Saif)
- कभी अपनी हंसी पर भी आता है गुस्सा
- कभी सारे जहाँ को हंसाने को जी चाहता है
- कभी छुपा लेता हूँ ग़मों को कोने में
- कभी किसी को सेवकुछ बताने को जी चाहता है
- कभी रोता नहीं दिल किसी कीमत पर
- कभी यूँही आंसूं बहाने को जी चाहता है
- कभी अच्छा लगता है आज़ाद उड़ना
- कभी किसी के बंधन में बंध जाने को जी चाहता है
- कभी लगते हैं अपने बेगाने से
- कभी बेगानों को अपना बनाने को जी चाहता है
- कभी ऊपर वाले का नाम आता नहीं ज़बान पे
- कभी उसी को मनाने को जी चाहता है
- कभी लगता है ये ज़िंदगी बड़ी सुहानी है
- कभी ज़िंदगी से उठ जाने को जी चाहता है
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