हाँ मेरा मज़हब-ए-इस्लाम इंसानियत का पैगाम देता है
जिसका कोई नहीं उसका हर हाल में खुदा है ये कहता है
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हर इंसान की मदद करना सिखाता है
ज़ुल्म सह लो पर किसी पे ज़ुल्म ना करो ये यही पैगाम देता है
लाख करो मेरे मज़हब-ए-इस्लाम की बुराई पर ये भी याद रखो
हर सच के पीछे लाखों झूंट दौड़ते है पर सच कभी ना थकता है
हाँ मेरा मज़हब-ए-इस्लाम इंसानियत का पैगाम देता है
जिसका कोई नहीं उसका हर हाल में खुदा है ये कहता है
इस्लाम के रिएक्शन पर नज़र रखते हो एक्शन को नज़रअंदाज़ करते हो
सब कुछ सह लेना नबी की शान में गुस्ताखी को छोड़ कर ये इस्लाम कहता है
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