Rizwan Ahmed (Saif)
- पास आओ एक इल्तजा सुन लो
- प्यार है तुम से है बेपनाह सुन लो
- एक तुम को खुदा से बस माँगा है
- जब भी मांगी है कोई दुआ सुन लो
- इब्तदा मोहब्बत की होती है तुम से
- तुम ही हो चाहत की इन्तहा सुन लो
- बिन तेरे जी नहीं सकते हम
- मेरी तरफ आओ मेरी सदा सुन लो
- देख लो ज़िंदगी अधूरी है
- ना रहो और अब जुदा सुन लो
- यूं तो लाखों हैं एक से बढ़ कर एक हसीं
- कोई तुम सा मगर है कहाँ सुन लो
- खानदानी बा हया होने के सभी दावा करते हैं
- तुम बिना दावे के बा हया खानदानी हो सुन लो
- तुम सिर्फ तुम हो ज़िंदगी मेरी
- सच है ये बात बाखुदा सुन लो
रिज़वान अहमद (सैफ)
- उसका इस तरह मुस्कुराना बताता है
- कोई ग़म ज़रूर है जिसको वो छुपाता है
- बात करने के अंदाज़ से साफ़ नज़र आता है
- कोई ग़म ज़रूर है जिसको वो छुपाता है
- हर हंसने वाला अंदर से खुश नहीं होता सैफ
- कोई कोई हंसने वाला हंसी में ग़म छुपाता है
- लोगों की भीड़ में रह कर भी तन्हा होता है वो
- भीड़ में रह कर वो अपना अकेलपन छुपाता है
- दिल में आंसू होठों पे मुस्कान रखता है वो अपने
- हाल कुछ और होता है और लोगों को कुछ दिखता है
- पीते पीते अश्कों को उसने अपने ज़हर बना लिया है
- फिर भी कमाल है वो अपने अश्कों को पीता जाता है
- ज़खमों को अपने वो कभी भरने ही नहीं देता
- खुद ही अपने ज़ख्मों को वो छेड़े जाता है
- दुश्मनों से लड़ता है वो बहादुरी से हारता भी नहीं
- अपने अपनों से मगर वो हर बार हार जाता है
Rizwan Ahmed Saif
- कभी ये दुआ के वो मेरा हो बस मेरा
- कभी ये डर के वो मुझसे जुदा तो नहीं
- कभी ये दुआ के उसे मिल जाएँ सारे जहाँ की खुशियां
- कभी खौफ के वो खुश मेरे बिना तो नहीं
- कभी ये शौक के बस जाऊं उसकी आँखों में
- कभी ये वहम के उसकी आँखों में कोई और बसा तो नहीं
- कभी ये तमन्ना के ज़माना हो मुन्तज़िर उसका
- कभी ये खौफ के उसे इंतज़ार किसी और का तो नहीं
- कभी ये आरज़ू वो जो मांगे मिल जाये उसे
- कभी ये वस्वसा उसने किसी और को माँगा तो नहीं
Rizwan Ahmed Saif
- तुम्हारा नाम लिख कर
- मिटाना भूल जाता हूँ
- तुम्हे जब याद करता हूँ
- भुलाना भूल जाता हूँ
- बहुत सी ऐसी बातें हैं
- जो मेरे दिल में रहती हैं
- मगर जब तुम से मिलता हूँ
- सुनाना भूल जाता हूँ
- मैं हर सुबह कहता हूँ
- के तुमको भूल जाऊंगा
- मगर जब शाम आती
- भूलाना भूल जाता हूँ
- कभी शिकवे भी होते हैं
- शिकायत भी होतीं हैं कभी
- तेरे मासूम चेहरे को
- देखते ही भूल जाता हूँ
कोई उस शख्श सा दुनिया में कहाँ होता है
लाखों चेहरों में जिसे दिल ने चुना होता है
हम तो उस मोड़ पे आ पहुंचे हैं मोहब्बत में जहां
दिल किसी और को चाहे तो गुनाह होता है
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