Rizwan Ahmed (Saif)
उससे कहना मोहब्बत दिलों के ताले तोड़ देती है
उससे कहना मोहब्बत दो दिलों को जोड़ देती है
उससे कहना मोहब्बत नाम है रूहों के मिलने का
उससे कहना मोहब्बत नाम है ज़ख्मों के सिलने का
उससे कहना मोहब्बत तो दिलों में रौशनी à¤à¤° दे
उससे कहना मोहब्बत पत्थरों को मोम सा कर दे
उससे कहना मोहब्बत दूर है रस्मो रिवाज़ों से
उससे कहना मोहब्बत अनजान है तख्तों से ताजों से
उससे कहना मोहब्बत फूल कलियाँ और खुशबु है
उससे कहना मोहब्बत चाँद तारे और जुगनू है
उससे कहना मोहब्बत का नहीं बदल कोई
उससे कहना मोहब्बत का नहीं हमशक्ल कोई
उससे कहना मोहब्बत का यकीं करलो मेरे हमदम
उससे कहना मोहब्बत दिल में तुम à¤à¤° लो मेरे हमदम
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