Rizwan Ahmed (Saif)
جنکے جانے سے جان جاتی تھی
ہمنے انکو بھی جانے دیا
जिनके जाने से जान जाती थी
हमने उनको भी जाने दिया
Jinke jaane se jaan jati thi
Humne unko bhi jaane diya
وو سامنے تھا مگر اسکو نگاہ چھو نا سکی
یہ احترم کی حد تھی یا میرے هونسلے کے کمال تھا
वो सामने था मगर उसको निगाह छू ना सकी
ये एहतराम की हद थी या मेरे हौंसले का कमाल था।
Wo saamne tha mere magar usko nigah chhoo na saki
Ye ehtram ki had thi ya mere hausle ka kamaal tha..
ملتے ہی نذر ہمسے چرا لیتے ہو تم نگاہ
کیا خوب سمجھتے ہو نگاہوں کی زبان تم
मिलते ही नज़र हमसे चुरा लेते हो तुम निगाह
किया खूब समझते हो निगाहों की ज़बां तुम।
Milte hi nazar tum se chura lete ho tum nigah
Kiya khoob samjhte ho nigahon ki zaban tum
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نا ہونے کا حساب سبکو ہے
موجودگی کی قدر کسی کو نہیں
ना होने का हिसाब सबको है
मौजूदगी की क़दर किसी को नही।।
Maujudgi ki qadar kisi ko na
اکیلی بیٹھ جاتی ہوں اگر تھک جاتی ہوں
میں لوگوں سے لہزوں کا شکوہ اب نہیں کرتی
अकेली बैठ जाती हूँ अगर जो थक जाती हूँ
मैं लोगों से लहजों का शिकवा अब नही करती
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