dard bhare sher

 


Rizwan Ahmed (Saif)



تباہ ہو کر بھی دل میں اک ڈر سا ہے 

کہ بیکار نہ چلی جائے تباہی میری

तबाह हो कर भी दिल में एक डर है 

के बेकार ना चली जाये तबाही मेरी 

Tabah ho kar bhi dil me ek dar hai 

ke bekar na chali jaaye tabahi meri



دل توڑنا ہی تھا تو سلیقے سے توڑتے 
بے وفائی کے آداب سے بھی واقف نہیں ہو تم 

दिल तोडना ही था तो सलीके से तोड़ते 
बेवफाई के भी आदाब से वाकिफ नहीं तुम 

Dil todna hi tha to saleeke se todte 
bewafai ke aadab se bhi wakif nahi tum



नोट:  मैं लगभग अपनी हर पोस्ट में आप सभी पढ़ने दोस्तों की मदद मांग रहा हूँ मैं बार बार कह रहा हूँ  इस वक़्त अलग से कोई कमाई नहीं है  मैं तीन सालों से इस वेबसाइट को चला रहा हूँ मेहनत कर रहा हूँ इस वक़्त थोड़ा परेशानियों में चल हूँ रहा मेरा मेहनताना समझ कर मेरी  इस QR कोड को स्कैन करके मदद करें,  या फिर इस नंबर पर मदद करें 9910222746 मेरी UPI ID है 9910222746@axisbank




ویسے تو وہ سنیں گے نہیں قاصد مگر پھر بھی سنا دینا
ملا کر دوسروں کی داستاں میں داستاں میری

वैसे तो वो सुनेंगे नहीं क़ासिद मगर फिर भी सुना देना 
मिला कर दूसरों की दास्ताँ में दास्ताँ मेरी 

Waise to wo sunenge nahi qasid magar fir bhi suna dena 
mila kar doosron ki daastan mei daastan meri 




جنگ میں بھی قتل کی اجازت نہیں عورت کو
تم لوگوں ا سے محبت میں مار دیتے ہو


जंग में भी क़त्ल की नहीं इजाज़त औरत को 
तुम लोग उसे मोहब्बत में मार देते हो 

Jang mein bhi qatl ki nahi ijazat aurat ko 
tum log use mohabbat mei maar dete ho 




نا لیتے  نیند آتی ہے نہ بیٹھے چین پڑتا ہے
لگا کر دل صنم سے ہم تو پڑگئے آفت مے 

ना लेते नींद आती है ना बैठे चैन पड़ता है 
लगा कर दिल सनम से हम तो पड़ गए आफत में 

Na lete neend aati hai na baithe chain padta hai 
laga kar dil sanam se hum to pad gaye aafat mei 



کبھی زندگی ایک پل میں گزر جاتی ہے 
نہیں گزرتا زندگی کا کبھی ایک پل

कभी ज़िंदगी एक पल में गुज़र जाती है 
नहीं गुज़रता कभी ज़िंदगी का एक पल 

Kabhi zindgi ek pal mei guzar jati hai 
nahi guzarta kabhi zindgi ka ek pal 



جو دکھ دے اسے چھوڑ دو،مگر
 جسے چھوڑ دو اسے دکھ نہ دو

जो दुःख दे उसे छोड़ दो, मगर
जिसे छोड़ दो उसे दुःख ना दो  

Jo dukh de use chhod do, magar 
jise chhod do use dukh naa do 





ہمیں بجھا دے ہماری انا کو قتل نہ کر 
کہ بے ضروری ہیں بے ضمیر ہم بھی نہیں

हमें बुझा दे हमारी अना को क़त्ल ना कर 
के बे ज़रूरी हैं बे ज़मीर हम भी नहीं 

Hamen bujha de hamari anaa ko qtl na kar
ke be zaruri sahi be zameer hum bhi nahin,



جب لگا کہ زبردستی اس پر مسلط ہو رہا ہوں 
اپنی ذات کے ٹکڑے اٹھائے تبھی اور اس سے الگ ہو گیا


जब लगा के ज़बरदस्ती उसपे मुसललत  हो रहा हूँ 
अपनी ज़ात के टुकड़े उठाये तभी और उससे अलग हो गया 

Jab laga ke zabardasti uspe musllat ho raha hun 
apni zaat ke tukde uthaye tabhi aur usse alag ho gaya 



یہی کہیں گے کہ نئی نسل تو بگڑ ہی گئی 

بزرگ لوگ نوجوانوں کا دکھ نہ سمجھیں گے

यही कहेंगे नई नस्ल तो बिगड़ ही गई 

बुज़ुर्ग लोग नौजवानों का दुःख ना समझेंगे 

Yahi kahenge nai nasl to bigad hi gai 

buzurg log naujavano ke dukh na samjhenge



Post a Comment

0 Comments