Rizwan Ahmed (Saif)
تباہ ہو کر بھی دل میں اک ڈر سا ہے
کہ بیکار نہ چلی جائے تباہی میری
तबाह हो कर भी दिल में एक डर है
के बेकार ना चली जाये तबाही मेरी
Tabah ho kar bhi dil me ek dar hai
ke bekar na chali jaaye tabahi meri
دل توڑنا ہی تھا تو سلیقے سے توڑتے
بے وفائی کے آداب سے بھی واقف نہیں ہو تم
दिल तोडना ही था तो सलीके से तोड़ते
बेवफाई के भी आदाब से वाकिफ नहीं तुम
Dil todna hi tha to saleeke se todte
bewafai ke aadab se bhi wakif nahi tum
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ویسے تو وہ سنیں گے نہیں قاصد مگر پھر بھی سنا دینا
ملا کر دوسروں کی داستاں میں داستاں میری
वैसे तो वो सुनेंगे नहीं क़ासिद मगर फिर भी सुना देना
मिला कर दूसरों की दास्ताँ में दास्ताँ मेरी
Waise to wo sunenge nahi qasid magar fir bhi suna dena
mila kar doosron ki daastan mei daastan meri
جنگ میں بھی قتل کی اجازت نہیں عورت کو
تم لوگوں ا سے محبت میں مار دیتے ہو
जंग में भी क़त्ल की नहीं इजाज़त औरत को
तुम लोग उसे मोहब्बत में मार देते हो
tum log use mohabbat mei maar dete ho
نا لیتے نیند آتی ہے نہ بیٹھے چین پڑتا ہے
لگا کر دل صنم سے ہم تو پڑگئے آفت مے
ना लेते नींद आती है ना बैठे चैन पड़ता है
लगा कर दिल सनम से हम तो पड़ गए आफत में
laga kar dil sanam se hum to pad gaye aafat mei
کبھی زندگی ایک پل میں گزر جاتی ہے
نہیں گزرتا زندگی کا کبھی ایک پل
कभी ज़िंदगी एक पल में गुज़र जाती है
नहीं गुज़रता कभी ज़िंदगी का एक पल
Kabhi zindgi ek pal mei guzar jati hai
nahi guzarta kabhi zindgi ka ek pal
جو دکھ دے اسے چھوڑ دو،مگر
جسے چھوڑ دو اسے دکھ نہ دو
जो दुःख दे उसे छोड़ दो, मगर
जिसे छोड़ दो उसे दुःख ना दो
Jo dukh de use chhod do, magar
jise chhod do use dukh naa do
ہمیں بجھا دے ہماری انا کو قتل نہ کر
کہ بے ضروری ہیں بے ضمیر ہم بھی نہیں
हमें बुझा दे हमारी अना को क़त्ल ना कर
के बे ज़रूरी हैं बे ज़मीर हम भी नहीं
Hamen bujha de hamari anaa ko qtl na kar
ke be zaruri sahi be zameer hum bhi nahin,
جب لگا کہ زبردستی اس پر مسلط ہو رہا ہوں
اپنی ذات کے ٹکڑے اٹھائے تبھی اور اس سے الگ ہو گیا
जब लगा के ज़बरदस्ती उसपे मुसललत हो रहा हूँ
अपनी ज़ात के टुकड़े उठाये तभी और उससे अलग हो गया
Jab laga ke zabardasti uspe musllat ho raha hun
apni zaat ke tukde uthaye tabhi aur usse alag ho gaya
یہی کہیں گے کہ نئی نسل تو بگڑ ہی گئی
بزرگ لوگ نوجوانوں کا دکھ نہ سمجھیں گے
यही कहेंगे नई नस्ल तो बिगड़ ही गई
बुज़ुर्ग लोग नौजवानों का दुःख ना समझेंगे
Yahi kahenge nai nasl to bigad hi gai
buzurg log naujavano ke dukh na samjhenge
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