Rizwan Ahmed (Saif)
उदास शामें उजाड़ रास्ते कभी बुलाएँ तो लौट आना
तुम्हारी आँखों में रतजगों के अजाब आएं तो लौट आना
अभी तो नई वादियों नए मंज़रों में रह लो मेरी जान....'
ये सारे एक एक करके तुम्हे छोड़ जाएँ तो लौट आना
जो शाम ढलते ही अपनी अपनी पनाहगाहों में लौटते हैं
वो पंछी तुम्हे कोई दास्तान सुनाएँ तो लौट आना
नये ज़मानों का दर्द ओढ़े ज़ईफ़ लम्हे निढाल यादें
तुम्हारे ख्वाबों के बंद कमरे में लौट आएं तो लौट आना
मैं रोज़ हवाओं पे लिख लिख कर उसकी जानिब भेजता हूँ
के अच्छे मौसम अगर पहाड़ों पे मुस्कुराएं तो लौट आना
अगर अंधेरों में छोड़ कर तुमको भूल जाएँ तुम्हारे साथी
और अपनी खातिर ही अपने दिये जलाएं तो लौट आना
मेरी वो बातें तू जिन पे हँसता था खिलखिला कर
बिछड़ने वाले मेरी वो बातें तुझे रुलाएं तो लौट आना
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