Rizwan Ahmed (Saif)
बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं
हम बे घरों कोई ठिकाना तो है नहीं
तुम भी हो बीते वक़्त की तरह हूबहू
तुमने भी याद आना है, आना तो है नहीं
वादा करने से किस लिए डरते हो मेरी जान
कर भी लो वादा तुमने निभाना तो है नहीं
वो जो है अज़ीज़ हमे कैसा है कौन है
क्यों पूछते हो हमने बताना तो है नहीं
जी चाहता है तुझे छोड़ कर भी देख लूँ
मैंने तेरे हुस्न को खाना तो है नहीं
दुनिया इश्क़ करने वालों पे फेंकती है क्यों जाल
हमने तेरे फरेब में आना तो है नहीं
कोशिश करें तो लौट ही आएगा एक दिन
वो आदमी है कोई गुज़रा ज़माना तो है नहीं
वो इश्क़ तो करेगा मगर देखभाल के
रिज़वान वो कोई तेरे जैसा दीवाना तो है नहीं,
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