मैं पल दो पल का शायर हूं पल दो पल मिरी कहानी है - साहिर लुधियानवी
Rizwan Ahmed 08-march_2021
मैं पल दो पल का शायर हूं पल दो पल मिरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मिरी जवानी है
मुझ से पहले कितने शायर आए और आ कर चले गएकुछ आहें भर कर लौट गए कुछ नग़्मे गा कर चले गए
वो भी इक पल का क़िस्सा थे मैं भी इक पल का क़िस्सा हूं
कल तुम से जुदा हो जाऊंगा गो आज तुम्हारा हिस्सा हूं
पल दो पल में कुछ कह पाया इतनी ही सआ'दत काफ़ी है
पल दो पल तुम ने मुझ को सुना इतनी ही इनायत काफ़ी है
कल और आएंगे नग़्मों की खिलती कलियां चुनने वाले
मुझ से बेहतर कहने वाले तुम से बेहतर सुनने वाले
हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महंगी मुद्रा है जो क़तरा क़तरा बटती है
सागर से उभरी लहर हूं मैं सागर में फिर खो जाऊंगा
मिट्टी की रूह का सपना हूं मिट्टी में फिर सो जाऊंगा
कल कोई मुझ को याद करे क्यूं कोई मुझ को याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिए क्यूं वक़्त अपना बरबाद करे
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