Ret ke sahra ko samundar kar de

 Rizwan Ahmed 02-November-2020

ऐ खुदा रेत के सहरा को समुन्दर कर दे

या छलकती हुई आँखों को भी पत्थर कर दे


तुझको देखा नहीं महसूस किया है मैंने

आ किसी दिन मेरे अहसास को पैकर कर दे


क़ैद होने से रहीं नींद की चंचल परियां

चाहे जितना भी गिलाफों को मखमली दे


दिल लुभाते हुवे ख्वाबों से कहीं बेहतर है

एक आंसू ही जो आँखों को मुनव्वर कर दे


और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन

मेरी चादर को मेरे पैरों के बराबर कर दे,




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