Rizwan Ahmed 14-Oct-2020
जो बीत गए हैं वो ज़माने नहीं आते
आते हैं नये लोग पुराने नहीं आते
लकड़ी के मकानों में चरागों को ना रखिये
अब आग पडोसी भी बुझाने नहीं आते
आते हैं नए लोग पुराने नहीं आते
जो बीत गए हैं वो ज़माने नहीं आते
इस शाख की डाली को मुद्दत हुई सुखे
पंछी भी यहाँ रात बिताने नहीं आते,
आते हैं नए लोग पुराने नहीं आते
जो बीत गए हैं वो ज़माने नहीं आते
सच बोलने वाले दफ़न हो गए कब के
गलती से भी अब सच बोलने वाले नहीं आते
आते हैं नए लोग पुराने नहीं आते
नफरत का है अब मोल मोहब्बत हुई बे मोल
ज़ख्मो पे अब मरहम लगाने वाले नहीं आते,
आते हैं नए लोग पुराने नहीं आते,
जो बीत गए हैं वो ज़माने नहीं आते
आते हैं नए लोग पुराने नहीं आते,
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