जहाँ पहुँच कर कदम डगमगाये हैं सबके
अब उसी मुकाम से अपना वास्ता है,
Jahan pahuch kar qadam dagmagaye sabke
ab usee mukaam se apna wasta hai
सफर में ऐसे कई मरहले भी आते हैं
हर एक मोड़ पर कुछ लोग छूट जाते हैं
जिन्हे ये फ़िक्र नहीं के सर रहे या सर ना रहे
वो सच ही कहतें हैं जब बोलने पे आते हैं
ज़माने को मुझसे जुदा हुवे अब तो ज़माना हो गया
रहा मुझसे बिछड़ने को अब तो बस तू बाकी ,
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