वो गूंगे बहरों की à¤ी सुनता है, वो कीड़े मकोड़ों की à¤ी ज़रूरतें पूरी करता है
नादान इंसान अपने रब को जानकर à¤ी ज़माने के आगे अपने आंसू जाया करता है
रिज़वान
0 Comments