बॉलीवुड का वो डायरेक्टर जिसे फिल्म की A.B.C.D नहीं आती थी और उसकी फिल्म ने इतिहास रच दिया,
K-आसिफ फिल्म इतिहास का एक ऐसा नाम जिसने भारतीय दर्शकों को एक ऐसी फिल्म दी जिस फिल्म को देखने की दीवानगी उस दौर में हम इस बात से लगा सकते हैं के इस फिल्म के सिर्फ सेट को देखने के लिए भारत के बाहर से भी लोग आते थे, अगर आपने "जब प्यार किया तो डरना" गाना देखा होगा तो आप इस बात का बखूबी अंदाज़ा लगा सकते होंगे के सिर्फ एक गाने को फिल्माने के लिए जब डायरेक्टर ने इतना पैसा खर्च कर दिया है तो पूरी फिल्म पे कितना पैसा बहाया होगा ,
मै आपका दोस्त रिज़वान अहमद आपकी खिदमत में एक बार फिर से एक अद्भुत जानकारी लेकर हाज़िर हूँ ,
बॉलीवुड के इतिहास में ये ऐसा डायरेक्टर था जो अपनी सिर्फ एक फिल्म के लिए जाना जाता है. इस आदमी को फिल्म बनाने की कोई खास ट्रेनिंग नहीं थी. पर अपने वक्त के सबसे बड़े लोगों को अपने हाथ में ले के घूमता था ये शख्स. नाम था के आसिफ. पूरा नाम करीमुद्दीन आसिफ. फिल्म बनाई थी ‘मुग़ल-ए-आज़म’. उत्तर प्रदेश के इटावा में से निकले आसिफ बंबई में अपने नाम का डंका बजा आये. जिद्दी आदमी थे. मंटो इनके बारे में लिखते हैं कि कुछ खास किया तो नहीं था, पर खुद पर भरोसा इतना था कि सामने वाला इंसान घबरा जाता था. बड़े गुलाम अली खान से अपने बतरस से लेकर अपनी फिल्म में बड़े-बड़े गीतकारों से ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के लिए 72 गाने लिखवाने की कहानियां हैं आसिफ की.
उनका जन्म 14 जून 1922 को यूपी के इटावा में हुआ था. 9 मार्च 1971 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से आसिफ की मौत हो गई थी. उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में केवल दो फ़िल्में बनाईं ‘फूल'(1945) और ‘मुग़ल-ए-आज़म’ (1960). उनकी पहली फिल्म तो कुछ खास कमाल नहीं कर सकी लेकिन दूसरी फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ ने इतिहास बना दिया. ‘मुग़ल-ए-आज़म’ को बनाने में 14 साल लगे थे.
ये फिल्म उस वक़्त बननी शुरू हुई जब हमारे यहां अंग्रेजों का राज था. शायद ये एक कारण भी हो सकता है जिसके चलते इसको बनाने में इतना वक़्त लगा. ये उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी, इस फिल्म की लागत तक़रीबन 1.5 करोड़ रुपये बताई जाती है. जब फिल्में 5-10 लाख रुपयों में बन जाती थीं. भारतीय सिनेमा के इतिहास में ये फिल्म कई मायनों में मील का पत्थर साबित हुई.
आइए आसिफ और इस फिल्म से जुड़े कुछ किस्से पढ़ते हैं:
1. इस फिल्म का आइडिया आसिफ को आर्देशिर ईरानी की फिल्म ‘अनारकली’ को देखकर आया था. इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने अपने अपने दोस्त शिराज़ अली हाकिम के साथ एक फिल्म बनाने का फैसला किया. शिराज़ उनकी फिल्म प्रोड्यूस कर रहे थे. फिल्म में चंद्रबाबू, डी.के सप्रू और नरगिस को साइन किया गया. 1946 में फिल्म की शूटिंग बॉम्बे टाकीज स्टूडियो में शुरू हुई. अभी शूटिंग शुरू ही हुई थी कि पार्टीशन की प्रक्रिया शुरू हो गयी जिसके कारण फिल्म के प्रोड्यूसर शिराज़ को हिंदुस्तान छोड़कर जाना पड़ा. 1952 में फिल्म को दोबारा नए सिरे से नए प्रोड्यूसर और कास्टिंग के साथ शुरू किया गया.
2. इस फिल्म में अकबर के रोल के लिए आसिफ उस वक्त के मशहूर अभिनेता चंद्रमोहन को लेना चाहते थे. पर चंद्रमोहन आसिफ के साथ काम करने के लिए तैयार नहीं थे. आसिफ को उनकी आंखें पसंद थीं. कह दिया था कि मैं दस साल इंतजार करूंगा पर फिल्म तो आपके साथ ही बनाऊंगा. पर कुछ समय बाद एक सड़क हादसे में चंद्रमोहन की आंखें ही चली गईं.
3. फिल्म के म्यूजिक को लेकर आसिफ बड़े ही गंभीर थे. उन्हें इस फिल्म के लिए बेहद ही उम्दा संगीत की दरकार थी. नोट से भरे ब्रीफ़केस को लेकर आसिफ मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद के पास पहुंचे और ब्रीफ़केस थमाते हुए कहा कि उन्हें अपनी फिल्म के लिए यादगार संगीत चाहिए, ये बात नौशाद साहब को बिलकुल नहीं भाई. उन्होंने नोटों से भरा ब्रीफ़केस खिड़की से बाहर फ़ेंक दिया और कहा कि म्यूजिक की क्वालिटी पैसे से नहीं आती. बाद में आसिफ ने नौशाद से माफी मांग ली. वो अंदाज भी ऐसा था कि नौशाद हंस के मान गए.
4. नौशाद फिल्म के लिए बड़े गुलाम अली साहब की आवाज़ चाहते थे, लेकिन गुलाम अली साहब ने ये कहकर मना कर दिया कि वो फिल्मों के लिए नहीं गाते. लेकिन आसिफ ज़िद पर अड़ गए कि गाना तो उनकी ही आवाज में रिकॉर्ड होगा. उनको मना करने के लिए गुलाम साहब ने कह दिया कि वो एक गाने के 25000 रुपये लेंगे. उस दौर में लता मंगेशकर और रफ़ी जैसे गायकों को एक गाने के लिए 300 से 400 रुपये मिलते थे. आसिफ साहब ने उन्हें कहा कि गुलाम साहब आप बेशकीमती हैं ,ये लीजिये 10000 रुपये एडवांस. अब गुलाम अली साहब के पास कोई बहाना नहीं था. उनका गाना फिल्म में सलीम और अनारकली के बीच हो रहे प्रणय सीन के बैकग्राउंड में बजता है.
5. फिल्म के एक सीन में पृथ्वीराज कपूर को रेत पर नंगे पांव चलना था. उस सीन की शूटिंग राजस्थान में हो रही थी जहां की रेत तप रही थी. उस सीन को करने में पृथ्वीराज कपूर के पांव पर छाले पड़ गए थे. जब ये बात आसिफ को पता चली तो उन्होंने भी अपने जूते उतार दिए और नंगे पांव गर्म रेत पर कैमरे के पीछे चलने लगे. अब कोई कुछ नहीं कह पाया था,
6. सोहराब मोदी की ‘झांसी की रानी'(1953) भारतीय सिनेमा की पहली रंगीन फिल्म थी. पर 1955 आते-आते रंगीन फ़िल्में बनने लगी थीं. इसी को देखते हुए आसिफ ने भी ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ सहित कुछ हिस्सों की शूटिंग टेक्निकलर में की जो उन्हें काफी पसंद आई. इसके बाद उन्होंने पूरी फिल्म को टेक्निकलर में दोबारा शूट करने का फैसला किया. लेकिन पहले ही फिल्म की शूटिंग में 10 साल से ज्यादा निकल चुके थे और बजट भी कई गुना बढ़ गया था. इन्हीं चीज़ों से परेशान होकर फिल्म के निर्माता और वितरकों ने दोबारा शूटिंग करने की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया. 14 साल में बनी फिल्म आधा कलर और आधा ब्लैक एंड वाइट में रिलीज़ हुई.
7. इस फिल्म के दौरान इससे जुड़े लोगों की निजी ज़िन्दगी में भी काफी हलचल हो रही थी. एक तरफ दिलीप कुमार और मधुबाला का 9 साल पुराना रिश्ता ख़त्म हो चुका था. मधुबाला की मां ने दिलीप से शादी ना होने देने के लिए हरसंभव कोशिश की थी. दोनों कलाकरों ने पूरी फिल्म की शूटिंग के दौरान एक दूसरे से बात नहीं की. वही दूसरी तरफ फिल्म के निर्देशक आसिफ ने दिलीप कुमार की बहन अख्तर बेगम से शादी कर ली. एक बार अख्तर बेगम और आसिफ में झगड़ा हुआ. दिलीप बचाव करने पहुंचे तो आसिफ ने कह दिया कि अपना स्टारडम मेरे घर से बाहर रखो. दिलीप कुमार इतना नाराज हुए कि फिल्म के प्रीमियर तक में नहीं गए थे. उन्होंने ये फिल्म भी 10 साल बाद देखी थी.
8. इस फिल्म में भारतीय इतिहास में पहली बार सेना के हाथी, घोड़ों और सैनिकों का इस्तेमाल किया गया था. सलीम और अकबर के बीच युद्ध का सीन फिल्माने के लिए जयपुर रेजिमेंट के सैनिकों को भी लिया गया था. इसके लिए आसिफ ने तत्कालीन भारतीय रक्षामंत्री कृष्णा मेनन से बाकायदा इज़ाज़त ली थी. इस सीन की शूटिंग के दौरान रक्षामंत्री खुद मौजूद थे. कहा ये भी जाता है कि इस सीन की शूटिंग में बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा था क्योंकि हाथी बमों की आवाज़ सुनकर इधर उधर भागने लगते थे और उनको नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता था. इसलिए कुछ हाथियों को, जो सेना से नहीं थे, अंधा कर दिया गया था.
9. फिल्म के एक गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ को फिल्माने में 10 लाख रुपये खर्च किये गए, ये वो उस दौर की वो रकम थी जिसमें एक पूरी फिल्म बन कर तैयार हो जाती थी. 105 गानों को रिजेक्ट करने के बाद नौशाद साहब ने ये गाना चुना था. इस गाने को लता मंगेशकर ने स्टूडियो के बाथरूम में जाकर गाया था, क्योंकि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में उन्हें वो धुन या गूंज नहीं मिल पा रही थी जो उन्हें उस गाने के लिए चाहिए थी. उस गाने को आज तक उसके बेहतरीन फिल्मांकन के लिए याद किया जाता है.उसी फिल्म के एक और गाने ‘ऐ मोहब्बत जिंदाबाद’ के लिए मोहम्मद रफ़ी के साथ 100 गायकों के कोरस से गवाया गया था. इस फिल्म को बड़ा बनाने के लिए हर छोटी चीज़ पर गौर किया गया था.
10. इस फिल्म के एक सीन में दिलीप कुमार को मधुबाला को थप्पड़ मारना था. उस फिल्म की शूटिंग के दौरान हीं दिलीप कुमार और मधुबाला का ब्रेकअप हुआ था. वो थप्पड़ बहुत धीरे धीरे मार रहे थे. या यूं कहें कि वो उन्हें मार नहीं पा रहे थे. दिलीप कुमार की इस हरकत से आसिफ बेहद खफा हो गए और उन्होंने खुद ही मधुबाला को थप्पड़ मारने का फैसला किया. बहुत जोर से मार दिया था.
11. इस फिल्म की शूटिंग के लिए बड़े भव्य सेट बनवाए गए थे, लेकिन फिल्म के कुछ खास हिस्सों की शूटिंग करने के लिए लाहौर के शीशमहल का डुप्लीकेट सेट बनवाया गया जिसमें शीशे का उपयोग किया गया था. लेकिन सेट पर लाइटिंग करने में दिक्कत होने लगी क्योंकि शीशे से लाइट रिफ्लेक्ट हो रही थी. फिल्म से जुड़े काम के लिए ब्रिटिश डायरेक्टर डेविड लीन को भी बुलाया गया था, जिनका कहना था कि ऐसे सेट पर शूटिंग करना संभव नहीं है. लेकिन आसिफ साहब ने अपने क्रू के साथ मिलकर सभी शीशों पर मोम की एक पतली परत चढ़ा दी जिससे रिफ्लेक्शन की समस्या दूर हो गयी और शूटिंग शुरू हो गयी. लेकिन इससे विजुअल्स धुंधले होने लगे. इसके बाद सिनेमेटोग्राफर आर डी माथुर ने शीशों पर झीने कपड़े डालकर शूटिंग शुरू कर दी. शीशमहल को 500 ट्रकों की हेडलाइट और 100 रिफलेक्टर्स से रोशन किया गया था.
12. फिल्म को बहुत ही बड़े लेवल पर बनाया जा रहा था इसलिए कई बार मेकर्स को खुद भी बहुत कुर्बानी देनी पड़ रही थी. फिल्म के डायरेक्टर आसिफ खुद सर से पैर तक क़र्ज़ में डूबे हुए थे. फिल्म के एक प्रोड्यूसर मोहम्मद अली जिन्ना के रिश्तेदार थे. उन्होंने जिन्ना का एक घर टाटा के यहां गिरवी रख दिया था. लेकिन जब फिल्म रिलीज़ होकर इतनी बड़ी ब्लॉकबस्टर हुई उसके बाद उन्होंने वो घर छुड़ाया नहीं, कंपनी को दे दिया. ये घर आज भी मालाबार हिल्स में है. अब से एक इंश्योरेंस कंपनी के पास है जो उस वक्त टाटा की ही हुआ करती थी.
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बॉलीवुड के इतिहास में ये ऐसा डायरेक्टर था जो अपनी सिर्फ एक फिल्म के लिए जाना जाता है. इस आदमी को फिल्म बनाने की कोई खास ट्रेनिंग नहीं थी. पर अपने वक्त के सबसे बड़े लोगों को अपने हाथ में ले के घूमता था ये शख्स. नाम था के आसिफ. पूरा नाम करीमुद्दीन आसिफ. फिल्म बनाई थी ‘मुग़ल-ए-आज़म’. उत्तर प्रदेश के इटावा में से निकले आसिफ बंबई में अपने नाम का डंका बजा आये. जिद्दी आदमी थे. मंटो इनके बारे में लिखते हैं कि कुछ खास किया तो नहीं था, पर खुद पर भरोसा इतना था कि सामने वाला इंसान घबरा जाता था. बड़े गुलाम अली खान से अपने बतरस से लेकर अपनी फिल्म में बड़े-बड़े गीतकारों से ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के लिए 72 गाने लिखवाने की कहानियां हैं आसिफ की.
उनका जन्म 14 जून 1922 को यूपी के इटावा में हुआ था. 9 मार्च 1971 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से आसिफ की मौत हो गई थी. उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में केवल दो फ़िल्में बनाईं ‘फूल'(1945) और ‘मुग़ल-ए-आज़म’ (1960). उनकी पहली फिल्म तो कुछ खास कमाल नहीं कर सकी लेकिन दूसरी फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ ने इतिहास बना दिया. ‘मुग़ल-ए-आज़म’ को बनाने में 14 साल लगे थे.
ये फिल्म उस वक़्त बननी शुरू हुई जब हमारे यहां अंग्रेजों का राज था. शायद ये एक कारण भी हो सकता है जिसके चलते इसको बनाने में इतना वक़्त लगा. ये उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी, इस फिल्म की लागत तक़रीबन 1.5 करोड़ रुपये बताई जाती है. जब फिल्में 5-10 लाख रुपयों में बन जाती थीं. भारतीय सिनेमा के इतिहास में ये फिल्म कई मायनों में मील का पत्थर साबित हुई.
आइए आसिफ और इस फिल्म से जुड़े कुछ किस्से पढ़ते हैं:
1. इस फिल्म का आइडिया आसिफ को आर्देशिर ईरानी की फिल्म ‘अनारकली’ को देखकर आया था. इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने अपने अपने दोस्त शिराज़ अली हाकिम के साथ एक फिल्म बनाने का फैसला किया. शिराज़ उनकी फिल्म प्रोड्यूस कर रहे थे. फिल्म में चंद्रबाबू, डी.के सप्रू और नरगिस को साइन किया गया. 1946 में फिल्म की शूटिंग बॉम्बे टाकीज स्टूडियो में शुरू हुई. अभी शूटिंग शुरू ही हुई थी कि पार्टीशन की प्रक्रिया शुरू हो गयी जिसके कारण फिल्म के प्रोड्यूसर शिराज़ को हिंदुस्तान छोड़कर जाना पड़ा. 1952 में फिल्म को दोबारा नए सिरे से नए प्रोड्यूसर और कास्टिंग के साथ शुरू किया गया.
2. इस फिल्म में अकबर के रोल के लिए आसिफ उस वक्त के मशहूर अभिनेता चंद्रमोहन को लेना चाहते थे. पर चंद्रमोहन आसिफ के साथ काम करने के लिए तैयार नहीं थे. आसिफ को उनकी आंखें पसंद थीं. कह दिया था कि मैं दस साल इंतजार करूंगा पर फिल्म तो आपके साथ ही बनाऊंगा. पर कुछ समय बाद एक सड़क हादसे में चंद्रमोहन की आंखें ही चली गईं.
3. फिल्म के म्यूजिक को लेकर आसिफ बड़े ही गंभीर थे. उन्हें इस फिल्म के लिए बेहद ही उम्दा संगीत की दरकार थी. नोट से भरे ब्रीफ़केस को लेकर आसिफ मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद के पास पहुंचे और ब्रीफ़केस थमाते हुए कहा कि उन्हें अपनी फिल्म के लिए यादगार संगीत चाहिए, ये बात नौशाद साहब को बिलकुल नहीं भाई. उन्होंने नोटों से भरा ब्रीफ़केस खिड़की से बाहर फ़ेंक दिया और कहा कि म्यूजिक की क्वालिटी पैसे से नहीं आती. बाद में आसिफ ने नौशाद से माफी मांग ली. वो अंदाज भी ऐसा था कि नौशाद हंस के मान गए.
4. नौशाद फिल्म के लिए बड़े गुलाम अली साहब की आवाज़ चाहते थे, लेकिन गुलाम अली साहब ने ये कहकर मना कर दिया कि वो फिल्मों के लिए नहीं गाते. लेकिन आसिफ ज़िद पर अड़ गए कि गाना तो उनकी ही आवाज में रिकॉर्ड होगा. उनको मना करने के लिए गुलाम साहब ने कह दिया कि वो एक गाने के 25000 रुपये लेंगे. उस दौर में लता मंगेशकर और रफ़ी जैसे गायकों को एक गाने के लिए 300 से 400 रुपये मिलते थे. आसिफ साहब ने उन्हें कहा कि गुलाम साहब आप बेशकीमती हैं ,ये लीजिये 10000 रुपये एडवांस. अब गुलाम अली साहब के पास कोई बहाना नहीं था. उनका गाना फिल्म में सलीम और अनारकली के बीच हो रहे प्रणय सीन के बैकग्राउंड में बजता है.
5. फिल्म के एक सीन में पृथ्वीराज कपूर को रेत पर नंगे पांव चलना था. उस सीन की शूटिंग राजस्थान में हो रही थी जहां की रेत तप रही थी. उस सीन को करने में पृथ्वीराज कपूर के पांव पर छाले पड़ गए थे. जब ये बात आसिफ को पता चली तो उन्होंने भी अपने जूते उतार दिए और नंगे पांव गर्म रेत पर कैमरे के पीछे चलने लगे. अब कोई कुछ नहीं कह पाया था,
6. सोहराब मोदी की ‘झांसी की रानी'(1953) भारतीय सिनेमा की पहली रंगीन फिल्म थी. पर 1955 आते-आते रंगीन फ़िल्में बनने लगी थीं. इसी को देखते हुए आसिफ ने भी ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ सहित कुछ हिस्सों की शूटिंग टेक्निकलर में की जो उन्हें काफी पसंद आई. इसके बाद उन्होंने पूरी फिल्म को टेक्निकलर में दोबारा शूट करने का फैसला किया. लेकिन पहले ही फिल्म की शूटिंग में 10 साल से ज्यादा निकल चुके थे और बजट भी कई गुना बढ़ गया था. इन्हीं चीज़ों से परेशान होकर फिल्म के निर्माता और वितरकों ने दोबारा शूटिंग करने की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया. 14 साल में बनी फिल्म आधा कलर और आधा ब्लैक एंड वाइट में रिलीज़ हुई.
7. इस फिल्म के दौरान इससे जुड़े लोगों की निजी ज़िन्दगी में भी काफी हलचल हो रही थी. एक तरफ दिलीप कुमार और मधुबाला का 9 साल पुराना रिश्ता ख़त्म हो चुका था. मधुबाला की मां ने दिलीप से शादी ना होने देने के लिए हरसंभव कोशिश की थी. दोनों कलाकरों ने पूरी फिल्म की शूटिंग के दौरान एक दूसरे से बात नहीं की. वही दूसरी तरफ फिल्म के निर्देशक आसिफ ने दिलीप कुमार की बहन अख्तर बेगम से शादी कर ली. एक बार अख्तर बेगम और आसिफ में झगड़ा हुआ. दिलीप बचाव करने पहुंचे तो आसिफ ने कह दिया कि अपना स्टारडम मेरे घर से बाहर रखो. दिलीप कुमार इतना नाराज हुए कि फिल्म के प्रीमियर तक में नहीं गए थे. उन्होंने ये फिल्म भी 10 साल बाद देखी थी.
8. इस फिल्म में भारतीय इतिहास में पहली बार सेना के हाथी, घोड़ों और सैनिकों का इस्तेमाल किया गया था. सलीम और अकबर के बीच युद्ध का सीन फिल्माने के लिए जयपुर रेजिमेंट के सैनिकों को भी लिया गया था. इसके लिए आसिफ ने तत्कालीन भारतीय रक्षामंत्री कृष्णा मेनन से बाकायदा इज़ाज़त ली थी. इस सीन की शूटिंग के दौरान रक्षामंत्री खुद मौजूद थे. कहा ये भी जाता है कि इस सीन की शूटिंग में बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा था क्योंकि हाथी बमों की आवाज़ सुनकर इधर उधर भागने लगते थे और उनको नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता था. इसलिए कुछ हाथियों को, जो सेना से नहीं थे, अंधा कर दिया गया था.
9. फिल्म के एक गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ को फिल्माने में 10 लाख रुपये खर्च किये गए, ये वो उस दौर की वो रकम थी जिसमें एक पूरी फिल्म बन कर तैयार हो जाती थी. 105 गानों को रिजेक्ट करने के बाद नौशाद साहब ने ये गाना चुना था. इस गाने को लता मंगेशकर ने स्टूडियो के बाथरूम में जाकर गाया था, क्योंकि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में उन्हें वो धुन या गूंज नहीं मिल पा रही थी जो उन्हें उस गाने के लिए चाहिए थी. उस गाने को आज तक उसके बेहतरीन फिल्मांकन के लिए याद किया जाता है.उसी फिल्म के एक और गाने ‘ऐ मोहब्बत जिंदाबाद’ के लिए मोहम्मद रफ़ी के साथ 100 गायकों के कोरस से गवाया गया था. इस फिल्म को बड़ा बनाने के लिए हर छोटी चीज़ पर गौर किया गया था.
10. इस फिल्म के एक सीन में दिलीप कुमार को मधुबाला को थप्पड़ मारना था. उस फिल्म की शूटिंग के दौरान हीं दिलीप कुमार और मधुबाला का ब्रेकअप हुआ था. वो थप्पड़ बहुत धीरे धीरे मार रहे थे. या यूं कहें कि वो उन्हें मार नहीं पा रहे थे. दिलीप कुमार की इस हरकत से आसिफ बेहद खफा हो गए और उन्होंने खुद ही मधुबाला को थप्पड़ मारने का फैसला किया. बहुत जोर से मार दिया था.
11. इस फिल्म की शूटिंग के लिए बड़े भव्य सेट बनवाए गए थे, लेकिन फिल्म के कुछ खास हिस्सों की शूटिंग करने के लिए लाहौर के शीशमहल का डुप्लीकेट सेट बनवाया गया जिसमें शीशे का उपयोग किया गया था. लेकिन सेट पर लाइटिंग करने में दिक्कत होने लगी क्योंकि शीशे से लाइट रिफ्लेक्ट हो रही थी. फिल्म से जुड़े काम के लिए ब्रिटिश डायरेक्टर डेविड लीन को भी बुलाया गया था, जिनका कहना था कि ऐसे सेट पर शूटिंग करना संभव नहीं है. लेकिन आसिफ साहब ने अपने क्रू के साथ मिलकर सभी शीशों पर मोम की एक पतली परत चढ़ा दी जिससे रिफ्लेक्शन की समस्या दूर हो गयी और शूटिंग शुरू हो गयी. लेकिन इससे विजुअल्स धुंधले होने लगे. इसके बाद सिनेमेटोग्राफर आर डी माथुर ने शीशों पर झीने कपड़े डालकर शूटिंग शुरू कर दी. शीशमहल को 500 ट्रकों की हेडलाइट और 100 रिफलेक्टर्स से रोशन किया गया था.
12. फिल्म को बहुत ही बड़े लेवल पर बनाया जा रहा था इसलिए कई बार मेकर्स को खुद भी बहुत कुर्बानी देनी पड़ रही थी. फिल्म के डायरेक्टर आसिफ खुद सर से पैर तक क़र्ज़ में डूबे हुए थे. फिल्म के एक प्रोड्यूसर मोहम्मद अली जिन्ना के रिश्तेदार थे. उन्होंने जिन्ना का एक घर टाटा के यहां गिरवी रख दिया था. लेकिन जब फिल्म रिलीज़ होकर इतनी बड़ी ब्लॉकबस्टर हुई उसके बाद उन्होंने वो घर छुड़ाया नहीं, कंपनी को दे दिया. ये घर आज भी मालाबार हिल्स में है. अब से एक इंश्योरेंस कंपनी के पास है जो उस वक्त टाटा की ही हुआ करती थी.
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